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क्या कसूर था आखिर मेरा ? भाग 16



दुर्जन हाथ  में जेवर  की पोटली लिए  गांव के सुनार के पास जाता है।

" आओ  आओ भाया  कैसे आना  हुआ आज  " सुनार ने कहाँ

दुर्जन " बस  बिटिया जवान  हो गयी  है  उसके हाथ  पीले  करने  का समय  आन  पंहुचा  है दोस्त बस  इसीलिए  तुम्हरे पास  आया  हूँ "


"अच्छा, तो फिर  क्या दिखाऊ  झुमके, बालियाँ , हार, नथुनी , पायल  क्या चाहिए  तुमको " सुनार ने पूछा 

"भाया मेरे पास  ये कुछ  पुराने ज़ेवर  है मुझे  बतादो  अगर  इनको बेच  कर  पैसे लेलूं या फिर  इनके बदले  तुमसे कुछ  ज़ेवर  लेलूं " दुर्जन ने पूछा 

सुनार ने ज़ेवर  देखे  और कहा " बहुत ही पुराने मालूम  होते है , इनके बदले  मैं तुमको कुछ  ज़ेवर  बना  दूंगा  जो तुम चाहोगे  "

"ठीक  है  भाया  जो तुमको ठीक  लगे बना  देना लेकिन खूबसूरत  सा कुछ  बनाना  जो मेरी बेटी के उपर  अच्छा लगे  " दुर्जन ने कहाँ

" भाया  तुम्हार बच्ची  मतलब  हमार  बच्ची , मैं स्वयं उसके लिए  ज़ेवर बनाऊंगा  तुम फ़िक्र मत  करो  दो हफ्ते बाद आ  जाना और ये लो पर्ची  अपने ज़ेवर  के वज़न  की पर्ची , जब  नया  ज़ेवर  लेने आओ  तो इसे अपने साथ  ले कर  आना  और देखना  सुनार फ़कीर  चंद  ने तुम्हे पूरा  ज़ेवर  ही दिया है  ना कही  कुछ  अपने पास  तो नही रख  लिया " सुनार ने कहाँ

" अरे भाया  केसी बात कर  रहे  हो  ये तुम मुझे  तुम पर  पूरा  भरोसा  है  " दुर्जन ने कहाँ

अच्छा भाया  मुझे  इज़ाज़त  दो और भी  काम निबटाने है । दुर्जन ने कहाँ और चला  गया 

चलो  एक काम तो हुआ दुर्जन ने अपने मन  में कहाँ।

तभी  सुनार की दुकान से निकलते  हुए  उसे किसी ने रोका।

"काका कैसे है  आप  " पीछे  से किसी ने कहा

दुर्जन ने पीछे  मुड़कर  देखा 

"राम, राम मास्टर जी। कैसे है  आप  " दुर्जन ने अंजली  के मास्टर से कहाँ

" मैं ठीक  हूँ काका, आप  बताये  घर  पर  अंजली  बिटिया केसी है  कॉलेज  में दाखिला  लिया या अभी  नही " मास्टर जी ने पूछा।

दुर्जन ने कहाँ " मास्टर जी अभी  तक  तो नही लिया दाखिला  लेकिन भगवान  की दया  से जल्द ही ले लेगी "

" अच्छा है और सुनार की दुकान पर  कैसे आना  हुआ " मास्टर जी ने पूछा 

दुर्जन ने कहाँ " अब क्या बताऊ  मास्टर जी आपसे  तो कुछ  छिपा  नही है , दरअसल  बात यूं है  कि अंजली  बिटिया कि शादी  है  एक माह के बाद इसी लिए  कुछ  ज़ेवर  पड़े  थे  अम्मा के पास  उन्हें ही तुड़वाकर  नए  बनवाने  आया  था  "


" ये तो बहुत  ख़ुशी  कि बात है , लेकिन अंजली  तो अभी  पढ़ना  चाहती  थी  और आप  भी  तो उसकी शादी  अभी  नही करना  चाहते  थे । तो फिर  ये फैसला इतनी जल्दी क्यू किया " मास्टर जी ने पूछा 


दुर्जन " मास्टर जी क्या है  ना मैं तो अब भी  उसकी शादी  नही करता  लेकिन वो मंजू  की शादी  में, मेरी बेटी मंजू  की मौसी  सास को पसंद  आ  गयी , और लड़का  भी  पढ़ा  लिखा  है  सरकारी  अध्यापक  है , और सास ससुर  भी  पढ़े  लिखें है, काफी सुलझी  फॅमिली है, और लड़का  कह  रहा  है  कि शादी  के बाद वो उसे स्वयं पढ़ा  देगा। ऐसे लड़के  और रिश्ते कहाँ रोज़ रोज़ मिलते है  हम  गरीबो  को तो बस  इसलिए  मेने भी  हाँ करदी । आप  भी  आना  पत्रिका लेकर  आऊंगा  आपके  घर  "


" जैसा आपको  सही  लगे , अंजली  आपकी  बेटी है  आप  उसका अच्छा बुरा हम  से अच्छा जानते हो। भगवान  भाग्य अच्छा करे  और उसके सपने  साकार हो। और जैसा लड़के  ने कहा है  उसे शादी  के बाद पढ़ाने  का भगवान  वैसा ही करे  वरना  शादी  के बाद सब  बदल  जाते है , और आखिर  में लड़की  के सपने  गृहस्थी की आग  में जल  जाते है । मेने अक्सर यही  देखा है  " मास्टर जी ने कहा

" नही नही मास्टर जी अमित ऐसा लड़का  नही है  वो आज  का पढ़ा  लिखा  पढ़ाई  की अहमियत  और औरत  की इज़्ज़त करने  वाला लड़का  है  मुझे  उम्मीद है  वो मेरी बेटी को खुश  रखेगा  और उसका सपना  कुछ बनने  का, वो उसे ज़रूर  पूरा  करेगा  " दुर्जन ने कहा

" अच्छा है  काका, जैसा आप  कह  रहे  है  वैसा ही हो, अब मैं चलता  हूँ  " ये कहकर  मास्टर जी ने वहा  से विदा ली


दुर्जन सोच  विचार  करता  हुआ एक बार फिर  अपने मुखिया  दोस्त के घर  आ  पहुंचा । " आओ , आओ  दुर्जन कैसे आना  हुआ " मुरली प्रसाद ने कहाँ


"कुछ  खास  नही मुरली मेरे दोस्त बस  बताने  आया  हूँ और धन्यवाद  करने  आया  हूँ अगर  तू  उस दिन पैसे ना देता तो बिटिया की सगाई  ना हो पाती " दुर्जन ने ज़मीन  पर  पालथी मार कर  बैठते  हुए  कहाँ

" मुश्किल घड़ी  में अपने काम नही आएंगे  तो फिर  क्या दुश्मन  काम आएंगे  " मुखिया  जी ने कहा

" सही  कहा दोस्त " दुर्जन ने कहा

" अच्छा ये बताओ  सब  अच्छे से निबट  गया  ना, कुछ  परेशानी  तो ना आयी  " मुखिया  जी ने पूछा 

"जी मुखिया  जी सब  अच्छे से  निबट  गया  और तो और शादी की तारीख़  भी  रख  गए  " दुर्जन ने कहाँ

" मुबारक  हो ये तो बेहद  अच्छी खबर  सुनाई  है  तुमने, बिटिया की शादी  की, तो कब  की रखी  शादी  " मुखिया  जी ने पूछा 

" मुखिया  जी अगले महीने  की पंद्रह तारीख़ का मुहर्त निकाला है  पंडित  जी ने " दुर्जन ने कहाँ

" लो अब तुम्हार बिटिया भी  परायी  हुयी गवा । अब वो भी  मेहमान बतौर  आया  करेगी  तुमसे मिलने " मुखिया  जी ने कहाँ

" जी मुखिया  जी, इसी बात का तो दुख  है  कि कैसे रहुगा  उसके बिना, उसे देखे  बिना तो मुझे  नींद भी  नही आती  है  और अब वो मुझसे  दूर  शहर  चली  जाएगी  और मेहमान कि तरह  मुझसे  मिलने आया  करेगी  " दुर्जन ने दुखी  आवाज़  में कहाँ

" कोई नही दुर्जन ये सौभाग्य भी  हर  किसी को नही मिलता है  दुनिया में, बेटी के कन्यादान का तुम तो एक अच्छे पिता हो, जिसने अपनी जवानी  अपनी बेटी के खातिर  कुर्बान करदी  चाह  कर  भी  उसे सौतेली माँ के हवाले  नही किया और स्वयं ही उसकी परवरिश  माँ और पिता बन  कर  की है, तुम जैसा पिता हर  बेटी का भगवान  दे " मुखिया  जी ने कहाँ

" अच्छा और बताओ  शादी  के लिए  पेसो का क्या सोचा  कहाँ से लओगे  इतनी रक़म " मुखिया  जी ने पूछा 

" मुखिया  जी, जाय के लाने तो हम  यहाँ तुम्हरे पास आवत  है , ताकि तुम हमरी ज़मीन  बिकवाने में मदद  कर  सको । तुम जानत हो किसी ऐसे सज्जन  को जो हमार  ज़मीन  गिरवी रख  ले अपने पास  और हमका  कछु  पैसे देदे, ताकि हम  अपनी बिटिया की डोली ख़ुशी  ख़ुशी  उठवा  सके  अपन  घर  से " दुर्जन ने कहा


" इस गांव मा तो बस  एक ही अमीर  सज्जन  है , उकरा नाम चौधरी  चरण  सिंह  साहूकार है , उसी के पास  आधे  गांव वालो की ज़मीन  गिरवी पड़ी  है । गांव वाले ज़रुरत  पड़ने  पर  ओकरे पास ही जावत  है , पैसे के खातिर । तुम भी  उसी के पास  जाओ अपनी ज़मीन  गिरवी रखवन के खातिर। उस जैसा अमीर  कौन है  इस गांव में। उसके घर  तो मानो लक्ष्मी मैया  निवास करती  है  " मुखिया  जी ने कहाँ

" मुखिया  जी आप  तो जानत  ही हो, ओकरे बेटे ने पांच  महीने  पहले  जो मेरी बेटी के साथ  किया था  उसके बाद मेने ही गांव वालो के साथ  मिलकर  उस के घर पर  हंगामा  किया था  और उसके बेटे को जैल  भी  भिजवा  दिया था । अंजली  को अगर  पता  चल गया  की मारी ज़मीन  औकरे  पास  गिरवी रखी  है , उसकी शादी  के खातिर  तो वो ये शादी  कभी  नही करेगी । और उसे कितना बुरा लगेगा  की उसके खातिर  उसके बाप ने उसको चोट  पहुंचाने  वाले राक्षस के बाप से मदद  मांगी । वो टूट  जाएगी। और शायद  मुझे  माफ भी  ना करे  " दुर्जन ने कहा


" दुर्जन, तुम्हरी बात दुरुस्त है , लेकिन ये भी  तो सोचो  तुम्हरे पास  कोई और रास्ता है  अपनी ज़मीन  को साहूकार के पास  गिरवी रखने  के अलावा। क्या कोई दूसरा  है  इस पूरे  गांव में जो तुम्हे ज़मीन  के बदले  हाथो  हाथ  एक बड़ी  रकम  दे सके । नही ना, कोई नही है  उस जैसा दौलत  मंद  इस पूरे  गांव में। वो तो इस गांव का माइबाप है । सोच  लो एक बार फिर  बिटिया की शादी  का मामला  है, और शादी  मतलब  खूब  सारा पैसा बिटिया का दहेज़ , बारतियों का खानपान , लेना - देना, दामाद का न्योता और भी  ना जाने क्या कुछ  " मुखिया  जी ने दुर्जन को समझाते  हुए  कहाँ।

" ठीक  है , मैं थोड़ा  सोच  विचार  करता  हूँ और ये भी  नही पता  की वो मुझे  पैसे देगा भी  या नही क्यूंकि मेरी बेटी ने उस के बेटे को जैल  भिजवा  दिया था ।" दुर्जन कहता  है 

उसके बाद दुर्जन वहा  से चला  जाता है  क्यूंकि मुखिया  तो उसकी मदद  करने  से रहा । इसी सोच  विचार  में वो खेत  पर  आ  जाता। और वहा  थोड़ा  आराम  करता  और सोचता  कि कौन उसे पैसे दे सकता  है  ताकि उसे साहूकार के पास  ना जाना पड़े ।

कुछ  नाम उसके दिमाग़ में आये । और वो बारी बारी सबके  पास गया  लेकिन किसी के पास  इतनी रकम  ना थी  कि वो, उसके साथ  ज़मीन  का सौदा कर  सके ।

सुबह  से शाम  तक  वो घर  घर  खेलता  रहा  और पूछता  रहा  कि शायद  कोई उसकी ज़मीन  के बदले  पैसे देदे। लेकिन उसे हर  जगह  से निराशा  ही मिली और वो थक  हार कर  अपने घर  आ  गया  और खाना  खा  कर  सौ जाता है ।



दुर्जन सारी रात सौ ना सका  उसे यही  चिंता खायी  जा रही  थी  कि आखिर  वो पेसो का इंतजाम  कहाँ से करेगा  पूरे  गांव में घूम  लिया कोई भी  ऐसा घर  नहीं जो उसे ज़मीन  के बदले  पैसे दे सके ।


उसके दिमाग़ में बार बार साहूकार का ख्याल  आता । और वो अपने आप  से ही मना  करता  उससे पैसे लेने को। इसी कश्मकश  में वो करवटे  बदलते  बदलते  सौ जाता है ।


एक हफ्ता गुज़र  जाता है । शादी  के दिन भी  नजदीक  आने  लगे  और उसके पास  पैसे नहीं थे ।

दुर्जन क्या हुआ बहुत  परेशान  लग  रहा  है ? अम्मा ने पूछा 

"क्या बताऊ  अम्मा। पूरा  गांव घूम  लिया कोई भी  ऐसा नहीं मिला जो मुझे  ज़मीन  के बदले  कुछ  पैसे दे सके  जिससे मैं अपनी बेटी ब्याह सकूँ अच्छे से । रात को नींद  भी  नहीं आ  रही  है  मुझे । बहुत  ही टूट  चूका  हूँ, अगर  पेसो का बंदोबस्त  नहीं हुआ तो क्या होगा कही  मेरी बेटी की बारात वापस  ना लोट जाए " दुर्जन अपनी अम्मा से कहता  है 

"मेने तुझे  बताया  था  कि इस गांव में कोई इतना अमीर  नहीं जो तेरी ज़मीन  ले सके  सिवाय उस साहूकार के, वो ही एक है जो तेरी ज़मीन  के बदले  तुझे  पैसे दे सके  " अम्मा ने कहा


"लेकिन अम्मा तू  तो जानती है  ना अगर  अंजली  को पता  चल  गवा  कि हमरी  ज़मीन  साहूकार के कब्ज़े में आ  गयी  है  तो वो शादी  से इंकार कर  देगी और बेवजह  बदनामी  हो जाएगी अगर  दरवाज़े  से बारात लोट गयी  " दुर्जन कहता  है 

"बदनामी  तो जब  भी होगी अगर  तेरी बेटी कि बारात तेरी चौखट  पर  खड़ी  होगी और तू  ना तो उन्हें अच्छा जलपान  ही करा  पायेगा और ना ही अपनी बेटी को  दहेज़  दे पायेगा तब  सोचा  है  कितनी बदनामी  होगी, फिर  तेरे दरवाज़े  पर  तेरी बेटी कि पहली  और आख़री  बारात होगी जो इस चौखट  पर  आएगी  लेकिन खाली  हाथ  ही लोट जाएगी " अम्मा कहती  है 


तू  ही बता  अब मैं क्या करू अम्मा ? दुर्जन ने पूछा 

" करना  क्या है  , जा उस साहूकार के पास  और कह  उससे कि वो अपनी ज़मीन  के बदले  कुछ  रकम  चाहता  है । अगर  देने से मना  करे  तो पैर पढ़  लेना और माफ़ी मांग लेना आखिर  तेरी बेटी कि शादी  का मामला  है  बेटी पैदा कि थी  तेरी लुगाई  ने तो अब झुकना  तो पड़ेगा  तुझे  " उसकी माँ ने कहा


दुर्जन अपनी अम्मा से बिना कुछ  कहे  वहा  से खेत  की तरफ  निकल  पड़ता  है । उसके कदम  तो खेत  की और बढ़  रहे थे  लेकिन उसका दिमाग़ कही  और ही था ।

खेत  पर  पड़ी  खाट पर  लेट कर  उसने काफी सोच  विचार  किया अम्मा की बातो को ध्यान से सोचा  और आखिर  में मजबूर  होकर  उसने फैसला कर  ही लिया की वो साहूकार के पास  जाएगा पेसो के लिए । अगर  उसने ऐसा नहीं किया तो शादी का दिन नजदीक आ  जाएगा और पेसो का बंदोबस्त नहीं हो पायेगा।


आखिर कार वो मजबूर  पिता अपनी बेटी की ख़ुशी  के खातिर ज़हर  का घूँट  पीता  हुआ साहूकार की हवेली की तरफ  बढ़ने  लगा । उसके दिमाग़ में हज़ारो  बाते चल  रही  थी  कि कही  साहूकार ने उससे अपनी बेइज़्ज़ती का बदला  लेने कि वजह  से उसकी ज़मीन  नहीं खरीदी  तब  वो क्या करेगा ?  कही  उसकी बेटी की बारात खाली  हाथ  ना लोट जाए।

इसी कश्मकश  में वो चलता  हुआ साहूकार की हवेली आ  पंहुचा ।

उसकी मज़बूरी  उसे एक बार फिर  साहूकार की हवेली  पर  ले आयी  एक बार जब  वो आया  था  तब  अपनी बेटी की इज़्ज़त बचाने  के लिए  आया  था  और आज  वो अपनी बेटी को इज़्ज़त के साथ  विदा करने  के खातिर  उससे पेसो की भीख  मांगने के लिए  आया । मजबूरी भी  क्या चीज है ? उस दिन दुर्जन को समझ  आ  रहा  था

बाहर  खड़े  दरबान  से उसने पूछा  मालिक घर  पर  है ?

दरबान  " क्यू क्या काम है  मालिक से तुम्हरा? "

दुर्जन " बहुत  ज़रूरी  काम आन  पड़ा  है  जाइ के खातिर हम  मालिक की हवेली  आये  है  "

दरबान  " तुम तो उई  आदमी  होना जोकरी बिटिया की वजह  छोटे  मालिक शहर  की जैल  में है  "

दुर्जन " छोटे  मालिक को अपने किये की सजा  मिल रही  है  औकरे  खातिर  वो जैल  में है  ना की हमरी  बिटिया के खातिर , तुम हमको  इ  बतलाऊ  कि मालिक अंदर  है  कि नाही "

दरबान  " रस्सी जल  गयी  पर  अकड़  नहीं गयी , ज़रुरत  पड़ने  पर  मालिक कि याद आ  गयी । वैसे उस दिन बड़ा  शेर  बन  रहा  था  गांव वालो के सामने। रुक अभी  मालिक को बताते  है  जाकर 

दुर्जन बेचारे  के पास  उस दरबान  कि कही  बातो को सहन  करने  के अलावा कोई दूसरा  रास्ता नहीं था ।


दरबान  अंदर  आकर ।

" मालिक, एक आदमी  आवत  है  दरवाज़े  पर  आपसे  मिलना चाहतो  है  " दरबान  ने कहा


" कौन आवत  है  ससुरे  को पता  ना है  कि ये हमरे  आराम  का समय  है  " साहूकार ने कहाँ

" मालिक माफ़ी चाहता  हूँ बोलने के लिए , ऊ  आदमी  आवत  है  जिसकी छोरी  की वजह  से छोटे  मालिक हवालात  में बंद  है  " दरबान  ने कहाँ

" ऊ ससुरा  आवत  है  भेज  जरा।  नही नही,,,,,,,, अभी  थोड़ा  इंतज़ार  करने  दे उसे बाहर धूप  में उस दिन बहुत  उछल  रहा  था  गांव वालो के सामने " साहूकार ने कहाँ जो हुक्का पी  रहा  था 

"जैसा आप  कहे  मालिक " दरबान  ने कहा और वहा  से चला  गया 

दुर्जन उसे बाहर  आता  देख " क्या हुआ मालिक ने क्या कहाँ मिल सकता  हूँ उनसे "

"अभी  नही अभी  वो सौ रहे  है  जैसे ही उठते  है मैं तुम्हे बता  दूंगा  जब  तक  तुम बाहर  धूप  में इंतज़ार  करो  " दरबान  ने कहाँ

दुर्जन बाहर  तपती  धूप  में खड़ा  रहा  और बार बार जाकर  पूछता  कि क्या मालिक जाग गए ? लेकिन दरबान  बार बार मना  करदेता  और वो बेचारा  निराश  हो कर  फिर  वापस  अपनी जगह  पर  खड़ा  हो जाता।

काफी देर बाद दरबान  अंदर  गया और बोला" मालिक क्या अब अंदर  भेज  दू  उस आदमी  को अब तो धूप  भी  चली  गयी  बाहर  की।"

"हाँ, हाँ अब भेज  दे जाकर  उस आदमी  को अंदर  मैं भी  तो देखु  क्या मजबूरी  आन  पड़ी  उसे जो वो मेरी चौखट  पर  आ गिरा " साहूकार ने कहाँ

"जैसा आपका  हुकुम मालिक " दरबान  ने कहाँ और बाहर  चला  जाता है.

"मालिक अंदर  बुला रहे है  तुमको " दरबान  ने कहाँ

दुर्जन ये सुन खुश  हुआ और हवेली  के अंदर  आ  गया ।

प्रणाम मालिक और मालकिन

सामने बैठे साहूकार और उसकी पत्नि को देखकर दुर्जन ने कहा।

" आओ  आओ  अब कौन तुम्हारी बेटी को उठा  ले गया किसकी शिकायत  करने  आये  हो मेरा बेटा तो जैल  में है  " साहूकार की पत्नि ने कहाँ

"नही नही मालकिन बिटिया तो घर  पर  ही है  " दुर्जन ने डरते  हुए  कहाँ

"तो फिर  कैसे आना  हुआ वो भी  अकेले अब गांव वाले नही आये  तुम्हरे साथ  उस दिन तो बहुत  अकड़  रहा  था  " साहूकार की पत्नि ने कहाँ


" मालकिन क्या है  ना उस दिन मैं अपनी बेटी को लेकर  बहुत  डर  गया  था  वो अपनी माँ की आख़री  निशानी  है  मेरे पास  अगर  कुछ  हो जाता तो मैं अपनी पत्नि को क्या मुँह दिखाता  बस  इसी लिए  कुछ  उल्टा सीधा  बोल दिया था मेने मुझे  माफ कर  दीजिये " दुर्जन ने हाथ  जोड़ते हुए  कहाँ


" माफ़ी मांगने आवत  है  या कछु  और काम भी  है  " साहूकार ने  हुक्के से धुआँ छोड़ते  हुए कहाँ

" मालिक वो क्या है ना घर में जवान  बिटिया है  जो अब शादी की उम्र की हो गयी  है  शहर  से एक रिश्ता आया  है  लड़का  भी  बेहद  अच्छा और पढ़ा  लिखा है । इसी लिए  उसकी शादी  करनी  है  अगले महीने  तो बस  आप  से थोड़ी  मदद  चाहिए  " दुर्जन ने कहाँ

" केसी मदद  " साहूकार की पत्नि ने कहाँ

"मालिक वो कुछ  पेसो की ज़रुरत  आन  पड़ी  है , मेरे पास  ज़मीन  है  जिस पर  फसल  लगी  है । मैं फसल  के बाद उस ज़मीन  को गिरवी रखना  चाहता  हूँ कुछ  समय  के लिए  जब  तक  सारे पैसे ना उतार दू  " दुर्जन ने कहाँ


" तो फसल  कटने  के बाद आता , अभी  क्यू चला आया   अभी  तो फसल  कटने  में एक महीना  बाकी है " साहूकार ने कहाँ

"मालिक वो क्या है ना बिटिया का दहेज़  बनाना  है और जो फसल  खेत  में लगी  है  उसे काट कर मुखिया जी का कर्ज उतारना है " दुर्जन कहता  है 

"ठीक है  मिल जाएंगे  पैसे लेकिन सूद  समीद  वापस  करना  होंगे और अगर  जरा  सी भी  देर हो गयी  रकम  अदा करने  में तो सारी ज़मीन  मेरी हो जाएगी कल  आ  जाना ज़मीन  के पेपर  लेकर  पहले  ज़मीन  देखूंगा  उसके बाद पैसे दूंगा । गरीबो  का दुख  मुझसे  देखा  नही जाता " साहूकार ने कहाँ

दुर्जन ये सुन खुश  हुआ और बोला बहुत  बहुत  धन्यवाद  मालिक

दुर्जन दुखी  था  क्यूंकि उसकी ज़मीन  जिसको उसने खून  पसीने  की कमाई  से सींचा  था , जिस ज़मीन  पर  काम करते  हुए  उसका बचपन  और जवानी  गुज़री आज  उसे अपने हाथो  से गिरवी रखना  पड़  रही  थी  वो नही जानता था  कि अब कभी  दोबारा वो उस ज़मीन  पर  खेती  कर  पायेगा या नही।


लेकिन वो खुश  था कि अब उसकी बेटी की शादी  धूम  धाम  से हो जाएगी बिना किसी रूकावट  और पैसे की कमी  की वजह  से


वो आख़री  बार अपने खेत  की तरफ  बड़ा , शाम  होने लगी  थी  किसान अपने अपने खेतो  से घर  की तरफ  लोट रहे  थे । जानवर  और पंछी  भी  अपने घोसलों की तरफ  बढ़  रहे  थे ।

दुर्जन अपने खेत  की मुंढेर पर  मायूस  खड़ा  अपने खेत  को निहार रहा  था । एक तरफ  बेटी विदा हो रही  थी  वही  दूसरी  तरफ  खेत  हाथ  से जा रहा  था । वो गुमसुम बैठा  काफी देर तक  अपने खेत  को आख़री  बार जी  भर  के देखता  रहा । क्यूंकि कल  को तो ये साहूकार का हो जाएगा।

जब  चारो  और अंधकार  फेलने  लगा  सूरज  भी  दूर  पहाड़ो  के बीच छिप  गया । तब  दुर्जन ने अपने खेत  से विदा ली उसकी आँखे  नाम थी ।

वो धीरे  धीरे  घर  की तरफ  आया  और घर  का दरवाज़ा  खटखटाया ।

अंजली  ने दरवाज़ा  खोला  " पिताजी प्रणाम, कहाँ थे  आप  बड़ी  देर करदी  घर आने  में चलये  अंदर  आइये  में आपके  लिए  चाय  बनाती  हूँ "

"जीती  रहो  मेरी बच्ची  " दुर्जन ने कहाँ

दुर्जन ने अंदर  आ  कर  पानी पिया और वही  पड़ी  खाट  पर  माँ के पास  बैठ  गया 

" काफी थक  गया  लगता  है  आज  " माँ ने पूछा 

"जी माँ आज  का दिन बहुत  तकलीफ  दे था  मेरे लिए" दुर्जन ने गहरी  सास लेते हुए  कहाँ

"क्यू ऐसा क्या हुआ आज? , पेसो का बंदोबस्त  हो गया" अम्मा ने पूछा 

" हाँ, अम्मा हो गया  पेसो का बंदोबस्त " दुर्जन ने कहाँ

"कैसे किया, साहूकार के पास  गया  था  क्या? " अम्मा ने पूछा 


" अम्मा हलके  बोलो अंजली रसोई  में है  उसने सुन लिया तो बस  " दुर्जन ने अम्मा को हलके  बोलने का कहाँ

" अच्छा बता  तो, साहूकार के पास  ही गया  था  अपनी ज़मीन  गिरवी रखने  के लिए  " अम्मा ने पूछा 

" हाँ, अम्मा और कौन है  इतना अमीर  इस गांव में जो ज़मीन  के बदले  पैसे दे सके। मरता  क्या ना करता , जाना ही पड़ा  उस के पास  कल  को बुलाया है  खेत  पर  कागज़ लेकर  पहले  वो ज़मीन देखे गा फिर  कही  पैसे देगा। बस  दुआ करो  कि मैं जल्द अपनी ज़मीन  उससे ले सकूँ, वरना  जिसकी भी  ज़मीन  उसने ब्याज पर  ली, उसे हथ्या ही लिया " दुर्जन ने कहाँ


"सब ठीक  हो जाएगा भगवान  की किर्पा से तू  परेशान  मत  हो " अम्मा ने कहाँ


"क्या हुआ कौन परेशान  ना हो? " अंजली  ने पूछा  जो की चाय  लेकर  वहा  आ  चुकी  थी 

"अरे बेटा कुछ  नही वो तो बस  अम्मा मुझसे कह  रही थी  की शादी  को लेकर  चिंतित  ना हूँ सब  ठीक  हो जाएगा " दुर्जन ने अंजली  को घबरा  कर  जवाब  दिया


"चलये  पिताजी और दादी चाय  पीते है  सब  साथ  में और मुझे  आप  दोनों को कुछ  दिखाना  है ।" अंजली  ने कहा

क्या दिखाना  है ? दुर्जन ने अचम्बे  से पूछा 

"अंजली  अंदर  से हाथ  में कुछ  लाती और कहती  पिताजी ये मोबाइल है  जो उस दिन अमित ने मुझे  दिया था  वो चाहता  है  की जब  तक  हमारी  शादी  नही हो जाती तब  तक  हमारे  घर  वाले आपस  में जब  कभी  भी  बात करना  चाहे  तो बात कर  सकते  है  हमें किसी दूसरे  के घर  जाने की ज़रुरत  ना होगी। मैं ने उससे बहुत  मना  करा  लेकिन उसने ज़बरदस्ती  दे दिया। अब आप  ही बताये  मैं क्या करू ।" अंजली  ने कहाँ

" बेटा ये तो बहुत  कीमती  लगता  है । अगर  किसी और ने दिया होता तो मुझे  शायद  बुरा लगता  लेकिन अब अमित हमारे  घर  का हिस्सा बनने  जा रहा  है  तो इस लिए तुम चाहो  तो इसे अपने पास  रख  सकती  हो, मुझे  तो नही पता  की ये कैसे चलता  है  " दुर्जन ने कहाँ

" राम, राम बस  इसकी और कमी रह  गयी  थी , हमारे  घर  में। ये बिगड़ जाएगी तेरी बेटी जो तू उसे ये मोबाइल दे रहा  है  " दादी ने कहाँ

" क्या अम्मा तू  भी  केसी बाते करती  है , अमित अब उसका होने वाला पति  है  अगर  वो कुछ  बाते कर  भी  लेगी तो क्या हुआ उसका मंगेतर  है  और एक महीने बाद ये दोनों शादी  के पवित्र बंधन  में बंध  जाएंगे । जमाना  बदल  रहा  है  शहर  में तो लड़किया  अपने पसंद  के लड़को  से शादी  कर  लेती है  और घर  वालो को बाद में बताती  है  कि हमने  शादी  करली । जा अंजली  तू  अंदर  जा इस मोबाइल को लेकर  मुझे  अच्छा लगा  कि तूने  मुझे  बताया कि अमित ने तुझे  मोबाइल दिया था  तू  चाहती  तो छिपा  कर  भी  रख  सकती  थी  इसे अपने पास  " दुर्जन ने कहाँ


" नही पिताजी मैं अपनी मर्यादा जानती हूँ, मैं तो मना  ही कर  रही  थी  अमित से मोबाइल लेने के लिए  उसने ही ज़बरदस्ती  दे दिया " अंजली  ने कहाँ


" मैं जानता हूँ अपनी बेटी को वो कभी  भी  कोई ऐसा काम नही कर  सकती  जिससे उसके पिता का सिर नीचे  झुके जा अब तू  अंदर  जा फिर  खाना  खाते  है  साथ  मैं " दुर्जन ने कहा

" जी पिताजी " अंजली  ने अंदर  जाते हुए  कहाँ

" बहुत  ही प्यारी बच्ची  है  मेरी बस  ससुराल  में भी  ऐसे ही सब  का दिल जीत  ले और भगवान  भाग्य अच्छा करे  " दुर्जन ने कहाँ।

दादी अंजली  कि तारीफ  सुन अपना मुँह बना लेती और कहती ,,,,,,,,



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3 Comments

Shnaya

07-Apr-2022 12:19 PM

Very nice👌

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Abhinav ji

03-Apr-2022 08:25 AM

Nice

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Dr. Arpita Agrawal

03-Apr-2022 12:46 AM

अति सुंदर 👌👌

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